The first four lines of this poem have been running in my thoughts for last 3-4 years ...
चलता चल तू चलता चल... चल अचल को लेके चल,
हाथ में ना हाथ हो, अगर न कोई साथ हो,
सोच ना, तू चलता चल,
चल अचल को ले के चल...
आंधियां तो आएंगी,
घनघोर होके छायेंगी,
दीप है तू, जलता चल,
चल अचल को ले के चल...
स्वपन जो हैं पूरे कर,
लगा दे उनको मन के पर,
आस्मां में उड़ता चल,
चल अचल को ले के चल...
आज ही तो है वो पल,
नाप ले ये जल, ये थल,
की सोच तेरी है अटल,
चल अचल को ले के चल...
.... अब तो न रुकूंगा मैं,
अब तो न झुकूंगा मैं,
हौंसले जो है बुलंद,
अब तो जो हो, चलता चल...
चल अचल को ले के चल....
1 comment:
Jab dost terey saath ho…. Or soch mein yeh baat ho…..
Chal padey yeh dharti saath mein…. Jab kadam terey badey…
Manzil fir na door dikhey….. armaan ho purey terey…
Soch Na Tu Chalta Chal…
Chal Achal ko Le ke Chal
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