Saturday, December 11, 2021

कुछ कर कुछ कर कुछ कर कुछ कर

 जब सोच थके, और मन घबराए,

दिल में लगने लगे जो डर,

कुछ कर कुछ कर कुछ कर कुछ कर।


आसमान काला पड़ जाए,

पंख थके, लंबी हो डगर,

कुछ कर कुछ कर कुछ कर कुछ कर।


पानी जब गहराता जाए, दम घुटे,

डूबे जब सर,

कुछ कर कुछ कर कुछ कर कुछ कर।


कुछ ना करके कभी कुछ हुआ नहीं,

कुछ ना करके कभी कुछ होगा नहीं, 

कुछ ना करने की मन में आने लगे अगर,

कुछ कर कुछ कर कुछ कर कुछ कर।

Thursday, September 16, 2021

Jeet

एक हार गया तो क्या हो गया ,

हम सब जीते यह बड़ी बात है।

हम खेले सभी अकेले थे पर,

हम साथ रहे यह बड़ी बात है।

और 

खेल जीतना एक बात थी,

हम दिल भी जीते यह बड़ी बात है।

एक हार गया तो क्या हो गया ,

हम सब जीते यह बड़ी बात है।


कभी जीत है कभी हार है,

जीवन का दस्तूर है लेकिन,

हार से जीत को छीन के लाना,

यह भी यारों बड़ी बात है।

खेल जीतना एक बात थी,

हम दिल भी जीते यह बड़ी बात है।


हां हार के थोड़े टूट गए थे,

फिर भी सबको दे दी थी मात।

हार अगर वो स्याह रात थी,

जीत बनी फिर चांद रात।

आगे और भी जीतेंगे हम,

ये तो बस एक शुरुआत है।

खेल जीतना एक बात थी,

हम दिल भी जीते यह बड़ी बात है।

एक हार गया तो क्या हो गया ,

हम सब जीते यह बड़ी बात है।




Sunday, September 5, 2021

Happy Teacher's Day

 आप सिर्फ गुरु नहीं गुरूर है मेरे,

कामयाबियों की मदहोशी के सुरूर है मेरे,

आप नहीं सिखाते तो मैं क्या करता,

ज़िन्दगी की उलझनों से बस डरता रहता।


आप सिर्फ गुरु नहीं आत्मविश्वास है मेरे,

मैं निरंतर बढ़ता हूं क्यों आप आस पास है मेरे,

आपके विश्वास से ही जीतता हूं मैं,

आप ही तैयारी और आप ही आगाज़ है मेरे।


आप सिर्फ गुरु नहीं मित्र है मेरे,

जिससे लोग जानते हैं मुझे, वह चरित्र है मेरे,

कभी चांद की शीतलता कभी सूर्यांका ताप हैं आप

मैं अर्जुन तभी हूं, जब मेरे द्रोण है आप।


आप ही के आशीर्वाद से खास बना मैं , यू तो मैं बस था आम,

हे मेरे गुरु आपको मेरा बारंबार प्रणाम।


Sunday, May 23, 2021

आत्म संबोधन

 तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था,

वो तो कोई और था जो मुझे अपना मानता था।

धूप छांव हर पल साथ रहते थे,

मैं तेरे लिए तू मेरे लिए खाख भी छानता था,

तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था।


जन्म से आज तक हर पल साथ निभाया है,

जो मुकाम हासिल किया वो भी तो तूने ही दिलाया है।

यह सच तू भी तो जानता था,

पर अब, तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था।


जब भी मेरे कदम रुक जाते थे चलते चलते,

तू ही तो मुझे मंजिल तक ले जाता था छलते  छलते।

मैं जितना भी मना करूं, तू कहां मानता था

पर अब, तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था।

आजा, आज फिर से कोई सपना जीते है,

आजा आज फिर से कामयाबियों के जाम पीते है।

ताकि मैं फिर सबसे कह सकूं , की तू ही मेरा वो हमसफ़र है जो हार नहीं मानता था,

की, तू ही तो मेरा मन है जिसे मै बचपन से जानता था।