Thursday, December 13, 2018

बाकि है अभी


ज़मीन पर  पैर टिकाये है तो क्या,
तलब करूँगा ऐ आस्मां तुझे भी,
हवाओ से गुफ्तगू बाकि है अभी

इंतज़ार है पंखो के बढ़ने का,
उड़ने के लिए वक्त मेरा, बाकि है अभी...

रुक गया हूँ चलते चलते अचानक अगर ,
तो हार के नहीं, बस राह को समझने के लिए ,
मंजिले पाना मुश्किल नहीं है ऐ दोस्त ,
 बस रुक कर फिर से कदम उठाना मेरा, बाकि है अभी...

और
खेल बहुत हुए होंगे ऐ ज़िन्दगी आपस में हमारे,
कभी हार भी गया तुझसे, तो क्या?
टूट कर बिखरना मेरा, बाकि है अभी...

 ... इंतज़ार है पंखो के बढ़ने का,


उड़ने के लिए वक्त मेरा, बाकि है अभी...

Monday, May 14, 2018

माँ, ऎसी क्यों है तू,

माँ, ऎसी क्यों है तू,
मैं हसता हूँ.. हसती है तू
मैं रोता हूँ। ...  रोती है तू ,
मैं सोता हूँ... सोती है तू...
जगता मैं हूँ... थकती है तू
माँ। .. माँ...ऐसी क्यों है तू

मुझको पूरा खाना देती ,खुद भूखी ही रहती है तू,
अपनी प्यास को भूल भुला कर,, मुझको पानी देती है तू ,
खुद पर जितने भी दुःख आये , मुझको सुख ही देती है तू ,
माँ। .. माँ...ऐसी क्यों है तू...

जब भी कही अँधेरे होते, मेरा सूरज होती है तू ,
मेरे सपने  तेरा सच है, मेरा एक कवच  है बस तू ,
बाकि सब कुछ झूठ है मेरा , मेरा एक ही सच है बस तू.
माँ। .. माँ...ऐसी क्यों है तू