ज़मीन पर पैर टिकाये है तो क्या,
तलब करूँगा ऐ आस्मां तुझे भी,
हवाओ से गुफ्तगू बाकि है अभी
इंतज़ार है पंखो के बढ़ने का,
उड़ने के लिए वक्त मेरा, बाकि है अभी...
तो हार के नहीं, बस राह को समझने के लिए ,
मंजिले पाना मुश्किल नहीं है ऐ दोस्त ,
बस रुक कर फिर से कदम उठाना मेरा, बाकि है अभी...
और
खेल बहुत हुए होंगे ऐ ज़िन्दगी आपस में हमारे,
कभी हार भी गया तुझसे, तो क्या?
टूट कर बिखरना मेरा, बाकि है अभी...
... इंतज़ार है पंखो के बढ़ने का,
उड़ने के लिए वक्त मेरा, बाकि है अभी...
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