Thursday, June 11, 2020

क्या कुछ ऐसा अलग कर जाऊं

क्या कुछ ऐसा अलग कर जाऊं,
की मैं, मैं न रहूं, कोई और हो जाऊं।
की मुझको तो कोई जानता ही नहीं ,
शायद कोई और बन के ही किसी की यादों में समाऊं। 

 कुछ भी करूँ और सबको खुश करूँ,
चाहे उसके लिए खुद ही रोज़ मरुँ। 
सब के लिए मैं सब कुछ बनूँ  , 
बस जो मैं हूँ, वो ही न रहूँ। 

 जब मन को टटोला अपने , तो एक आवाज़ आयी, 
क्यों कोई और बन जाऊं , क्यों  कोई और बन के किसी को याद आऊं। 
 एक बार अपने आप को... अपने नाम  को जी तो सही, 
अरे तुझे कोई जानेगा कैसे ...
तू खुद तो कभी खुद बन के रहा नहीं। 

खुश हूँ की अब मैं ही हो गया हूँ  मैं,
मस्त हो के अपनी ही रंगत में खो गया हूँ मैं । 
कुछ चाहने वाले  कम जरूर हुए होंगे , 
गिनती के ही सही, अपनों की ही संगत में हो गया हूँ मैं.....  

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