मेरे स्कूल का वो प्यारा सा बचपन जाने कहा खो गया।
थोड़ी शरारते , थोड़ी पढाई , वो बेतक्कलुफी का वक्त जाने कहा सो गया,
मेरे स्कूल का वो प्यारा सा बचपन जाने कहा खो गया ।
be it testing times..be it celebrations..be it depressing relationships.. its only your own thoughts which creates such situations
मेरे स्कूल का वो प्यारा सा बचपन जाने कहा खो गया।
थोड़ी शरारते , थोड़ी पढाई , वो बेतक्कलुफी का वक्त जाने कहा सो गया,
मेरे स्कूल का वो प्यारा सा बचपन जाने कहा खो गया ।
जब मैंने बारिश की बूँद को सागर में डूबते देखा ,
तो पूछा क्यों?
जब मैंने एक पक्षी को ओस की बूँद को पीते देखा,
तो पूछा क्यों?
जब मैंने सूरज की तपिश को चांदनी में बदलते देखा
तो पूछा क्यों ?
और,
जब मैंने कली को फूल में बदलते देखा,
तो पूछा क्यों?
... सबका एक ही जवाब था...
हमारे होने से हमारा अस्तित्व है, पर हमारे खोने से किसी किसी और को जीवन मिलता है।
बूँद ने कहा, मैं हिलती हूँ तो सागर चलता है।
ओस ने कहा की पक्षी मुझे पीता है, तभी तो जीता है।
सूरज ने कहा की मैं जाता हूँ , तभी तो चाँद को रास्ता मिलता है।
और
कली ने कहा की मैं खुलती हूँ तभी तो फूल खिलता है।
हमारे होने से हमारा अस्तित्व है, पर हमारे खोने से किसी किसी और को जीवन मिलता है।