तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था,
वो तो कोई और था जो मुझे अपना मानता था।
धूप छांव हर पल साथ रहते थे,
मैं तेरे लिए तू मेरे लिए खाख भी छानता था,
तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था।
जन्म से आज तक हर पल साथ निभाया है,
जो मुकाम हासिल किया वो भी तो तूने ही दिलाया है।
यह सच तू भी तो जानता था,
पर अब, तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था।
जब भी मेरे कदम रुक जाते थे चलते चलते,
तू ही तो मुझे मंजिल तक ले जाता था छलते छलते।
मैं जितना भी मना करूं, तू कहां मानता था
पर अब, तू वो बंदा ही नहीं, जिसे मैं जानता था।
आजा, आज फिर से कोई सपना जीते है,
आजा आज फिर से कामयाबियों के जाम पीते है।
ताकि मैं फिर सबसे कह सकूं , की तू ही मेरा वो हमसफ़र है जो हार नहीं मानता था,
की, तू ही तो मेरा मन है जिसे मै बचपन से जानता था।